मुद्रास्फीति(inflation in hindi)
मुद्रास्फीति(Inflation) एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया है जिसमें समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार वृद्धि होती है। जब किसी देश की मुद्रा की क्रय शक्ति घटने लगती है और रोजमर्रा की चीज महंगी हो जाती है, तो उस स्थिति को मुद्रास्फीति कहा जाता है। यह एक सामान्य आर्थिक घटना है जो हर देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। इस लेख में आप विस्तार से जानेंगे कि मुद्रास्फीति क्या होती है, इसके प्रकार, कारण, प्रभाव और नियंत्रण के उपाय क्या हैं।
मुद्रास्फीति
मुद्रास्फीति एक ऐसी आर्थिक स्थिति है जिसमें समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार वृद्धि होती है। इसका मतलब है कि आज जो चीज ₹100 में मिलती है वही चीज भविष्य में 110 या 120 रुपए में मिल सकती है।
मुद्रास्फीति के मुख्य कारण
1. मांग अधिक होना(Demand Pull Inflation):-
जब किसी वस्तु या सेवा की मांग उसकी आपूर्ति से अधिक हो जाती है।
2. लागत में वृद्धि (Cost Push Inflation):-
जब कच्चे माल या मजदूरी की लागत बढ़ जाती है।
3. मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि
जब बाजार में बहुत अधिक पैसा आ जाता है तो उसकी क्रय शक्ति घट जाती है।
मुद्रास्फीति के प्रकार(Types of Inflation):-
1. मांग आधारित मुद्रास्फीति(Demand Pull Inflation):-
जब बाजार में किसी वस्तु या सेवा की मांग बहुत बढ़ जाती है, लेकिन आपूर्ति उतनी नहीं होती इससे कीमतें बढ़ जाती है।
उदाहरण त्योहारी सीजन में मिठाइयां या हवाई टिकटों की मांग बढ़ जाती है,जिससे उनकी कीमतें भी बढ़ जाती है।
2. लागत आधारित मुद्रास्फीति(Cost Push Inflation):-
जब उत्पादन की लागत (जैसे कच्चा माल, मजदूरी, बिजली आदि) बढ़ती है, तो कंपनियां यह बढी हुई लागत ग्राहकों पर डाल देती है। इससे कीमतें बढ़ जाती है।
उदाहरण: पेट्रोल डीजल की कीमत बढ़ने से ट्रांसपोर्ट महंगा हो जाता है और इसका असर सभी वस्तुओं की कीमतों पर पड़ता है।
3. मुद्रा आपूर्ति आधारित मुद्रास्फीति(Monetory Inflation)
जब सरकार या रिजर्व बैंक बहुत ज्यादा मुद्रा(Money) बाजार में छोड़ती है, तो लोगों के पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा होता है। इससे मांग बढ़ती है और कीमत ऊपर जाती है।
मुद्रास्फीति के अन्य भिन्न रूप
1. गत्यावरोध/मार्गावरोध मुद्रास्फीति
जब किसी चीज की मांग तो ज्यादा होती है, लेकिन उसे बनाने या पहुंचाने में कोई रुकावट आ जाती है, जिससे चीजों की कीमतें बढ़ जाती है तो उसे गत्याविरोध मुद्रास्फीति कहते हैं।
आसान उदाहरण
अगर मोबाइल बनाने के लिए जरूरी चिप मिलनी बंद हो जाए, तो मोबाइल बनना रुक जाएगा। लेकिन लोग मोबाइल खरीदना चाहते हैं, इसलिए जो मोबाइल बचे होते हैं, उनकी कीमत बढ़ जाती है।
मतलब
- चीजें कम बन रही है या देर से बन रही है
- मांग ज्यादा है, लेकिन आपूर्ति में रुकावट है
- इसी कारण चीजों के दाम बढ़ते हैं
यह मंगाई एक खास वजह से होती है यानी सप्लाई में अड़चन आने से।
2. मर्म मुद्रास्फीति(Core Inflation):-
जब हम महंगाई का हिसाब लगते हैं, तो कुछ चीजें जैसे सब्जी, फल और पेट्रोल की कीमतें रोज बदलती है। इसलिए इन्हें छोड़कर जो बाकी चीजों की महंगाई देखी जाती है, उसे कोर इन्फ्लेशन कहते हैं
आसान शब्दों में:
कोर इन्फ्लेशन मतलब - रोज बदलने वाली चीजों को छोड़कर बाकी चीजों की महंगाई।
क्यों जरूरी है?
ताकि हमें असली और स्थिर महंगाई का सही अंदाजा मिल सके।
अन्य महत्वपूर्ण पद(Other Important Terms)
मुद्रास्फीतिजन्य अंतर/ मुद्रास्फीतिकारी अंतर (Inflationary Gap):-
जब किसी देश की कुल मांग(Total Demand), उस देश के उत्पादन क्षमता(Production Capacity) से ज्यादा हो जाती है, तो उस स्थिति को मुद्रास्फीतिजन्य अंतर कहते हैं।
इससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग अधिक हो जाती है, लेकिन आपूर्ति उतनी नहीं होती - जिससे कीमतें बढ़ने लगती है यानी महंगाई होती है।
बहुत आसान भाषा में:
जब लोग ज्यादा सामान खरीदना चाहते हैं, लेकिन बाजार में उतना सामान नहीं होता - तो दाम बढ़ जाते हैं। इसे ही इन्फ्लेशनरी गैप कहते हैं।
मुद्रास्फीति कर(Inflation Tax)
मुद्रास्फीति कर असल में कोई सीधा टैक्स नहीं होता, बल्कि जब मुद्रास्फीति (महंगाई) बढ़ती है, तो आपकी पैसों की खरीदने की ताकत कम हो जाती है। इसी को इन्फ्लेशन टैक्स कहा जाता है।
आसान शब्दों में:
जब महंगाई बढ़ने से आपके पैसे की कीमत घट जाती है, तो आपको एक तरह से चुपचाप टैक्स देना पड़ता है, क्योंकि आप उसी पैसे से अब कम चीज खरीद पाते हैं।
उदाहरण:
अगर आपके पास ₹100 है और पहले उससे 10 किलो चीनी आता था, लेकिन अब उसी ₹100 में सिर्फ 7 किलो चीनी आता है - तो वह 3 किलो की खोई हुई कीमत ही आपका इन्फ्लेशन टैक्स है।
क्यों कहते हैं इस टैक्स
क्योंकि आपकी जेब से बिना सरकार टैक्स लिए ही पैसा कमजोर हो जाता है - यानी आपको नुकसान होता है, और सरकार को फायदा, खासकर अगर वो ज्यादा नोट छापती है।
मुद्रास्फीति कुंडली(Inflation Spiral)
मुद्रास्फीति कुंडली एक ऐसी स्थिति होती है जब महंगाई बार-बार और लगातार बढ़ती जाती है, और एक चक्कर बन जाता है जिसमें:
- कीमत बढ़ती है
- लोग ज्यादा वेतन की मांग करते हैं
- वेतन बढ़ता है, तो लोग ज्यादा खर्च करते हैं
- मांग बढ़ती है, फिर कीमतें और बढ़ती है
यह चक्कर बार-बार दोहराया जाता है - और महंगाई रुकने का नाम नहीं लेती।
आसान भाषा में समझे:
जब महंगाई बढ़ती है, तो वेतन बढ़ता है, जिससे खर्च और मांग बढ़ती है- फिर से महंगाई बढ़ती है। इसी को इन्फ्लेशन स्पाइरल कहते हैं।
उदाहरण:
- पेट्रोल महंगा हुआ
- सामान लाने ले जाने का खर्च बढ़
- दुकानदार ने कीमतें बढ़ई
- कर्मचारियों ने वेतन बढ़ाने की मांग की
- वेतन बढ़ ,तो फिर से लोग ज्यादा खरीदने लगे
- मांग बढ़ी और फिर महंगाई बढ़ गई
मुद्रास्फीति लेखा (Inflation Accounting):-
जब महंगाई बढ़ती है, तो चीजों की कीमतें भी बढ़ जाती है। लेकिन हमारी कंपनी की अकाउंटिंग (लेखांकन) पुराने रेट यानी जिस रेट पर चीज खरीदी गई थी उसी हिसाब से होती है। इससे कंपनी के फायदे, खर्च या संपत्ति की सही जानकारी नहीं मिलती।
मुद्रास्फीति लेखा एक तरीका है जिससे हम अकाउंट्स को महंगाई के हिसाब से सुधारते हैं, ताकि आज की कीमतों के मुताबिक सही जानकारी मिल सके।
क्यों जरूरी है?
अगर 10 साल पहले मशीन एक लाख की थी और आज वही मशीन 5 लाख की है, तो अकाउंट में अभी भी एक लाख दिखाना सही नहीं है। इससे कंपनी की असली स्थिति नहीं दिखती। इसलिए महंगाई को ध्यान में रखना जरूरी है।
तरीके
1.Current Purchasing Power (CPP)
महंगाई के इंडेक्स (जैसे CPI) की की मदद से पुराने नंबरों को आज के हिसाब से बदलते हैं।
2. Current Cost Accounting (CCA)
चीजों की आज की कीमतों के हिसाब से अकाउंटिंग करते हैं।
फायदे
कंपनी की सही स्थिति पता चलती है।
निवेशको और सरकार को सच्ची जानकारी मिलती है।
टैक्स और प्लानिंग में मदद मिलती है।
नुकसान
थोड़ा मुश्किल होता है समझने और करना।
महंगाई के सही आंकड़े जरूरी होते हैं।
मुद्रास्फीति अधिमूल्य/ मुद्रास्फीति प्रीमियम (Inflation Premium):-
मुद्रास्फीति प्रीमियम का मतलब है महंगाई की भरपाई के लिए लिया गया एक्स्ट्रा ब्याज
जब कोई व्यक्ति या बैंक किसी को पैसे उधार देता है, तो वह चाहता है कि जब पैसा वापस मिले, तब उसकी कीमत कम न हो। लेकिन अगर महंगाई बढ़ गई तो पैसे की ताकत घट जाएगी। इसलिए उधार देने वाला थोड़ी ज्यादा ब्याज मांगता है ताकि महंगाई से जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई हो जाए। यही एक्स्ट्रा ब्याज मुद्रास्फीति प्रीमियम कहलाता है।
फिलिप्स वक्र(Phillips Curve):-
फिलिप्स वक्र एक आर्थिक सिद्धांत है जो बेरोजगारी और मुद्रास्फीति के बीच संबंध को दिखाता है।
इस वक्र के अनुसार, जब बेरोजगारी कम होती है, तब महंगाई ज्यादा होती है और जब बेरोजगारी ज्यादा होती है तब महंगाई कम होती है। यानी इन दोनों में उल्टा संबंध होता है।
आसान उदाहरण
अगर देश में बहुत लोग काम कर रहे हैं (बेरोजगारी कम है) तो लोगों के पास ज्यादा पैसा होगा और वह ज्यादा चीज खरीदेंगे, जिससे कीमतें बढ़ने लगती है (महंगाई बढ़ती है)। वहीं अगर बहुत से लोग बेरोजगार हैं, तो मांग कम होगी और महंगाई भी कम हो जाएगी।
महत्वपूर्ण बातें
- यह वक्र अल्पकाल में सही माना जाता है।
- दीर्घकाल में यह संबंध हमेशा वैसा नहीं रहता।
- सरकारें इस सिद्धांत की मदद से नीतियां बनाती हैं, जैसे ब्याज दर तय करना या रोजगार बढ़ाने की योजना।
प्रतिसारजन्य मुद्रास्फीति(Reflation):-
रिफ्लेक्शन एक ऐसी स्थिति या प्रक्रिया होती है जब सरकार या केंद्रीय बैंक जानबूझकर अर्थव्यवस्था में पैसे की मात्रा बढ़ाकर महंगाई को बढ़ाने की कोशिश करता है, खासकर तब जब देश मंदी या बहुत कम महंगाई से गुजारा हो।
रिफ्लेक्शन का उद्देश्य
- आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
- रोजगार के मौके बढ़ाना
- गिरती हुई कीमतों को रोकना
- बाजार में मांग बढ़ाना
कैसे किया जाता है?
- ब्याज दरों को घटाकर
- टैक्स कम करके
- सरकारी खर्च बढ़ाकर (जैसे सड़कों या योजनाओं पर खर्च)
- लोगों को ज्यादा पैसा देने के लिए नीतियां अपनाकर
उदाहरण
अगर किसी देश में मंदी आ गई और लोग खर्च नहीं कर रहे हैं, तो सरकार टैक्स घटाकर और योजनाओं में पैसा लगाकर लोगों की आमदनी बढ़ाती है। इससे खर्च और मांग बढ़ती है, और धीरे-धीरे महंगाई सामान्य स्तर पर आ जाती है -यही होता है रिफ्लेक्शन।
स्थगनजन्य मुद्रास्फीति(Stagflation):-
स्टैगफ्लेशन एक ऐसी आर्थिक स्थिति होती है जिसमें एक साथ तीन चीजें होती है
- मंदी जैसी धीमी आर्थिक वृद्धि
- बेरोजगारी बढ़ना
- महंगाई भी बढ़ना
आमतौर पर क्या होता है?
आमतौर पर जब अर्थव्यवस्था धीमी होती है, तो महंगाई कम होती है। लेकिन स्टैगफ्लेशन में ऐसा नहीं होता- यहां अर्थव्यवस्था भी कमजोर होती है और महंगाई भी ज्यादा होती है, जो कि बहुत मुश्किल स्थिति होती है।
स्टैगफ्लेशन क्यों खतरनाक होता है?
- महंगाई को कम करने के लिए ब्याज दर बढ़ाई जाती है, जिससे मंदी और बेरोजगारी और बढ़ सकती है।
- और अगर बेरोजगारी कम करनी है, तो महंगाई और बढ़ सकती है।
- यानी सरकार रिज़र्व बैंक के पास बहुत सीमित विकल्प होते हैं।
उदाहरण:
1970 के दशक में अमेरिका में स्टैगफ्लेशन हुआ था, जब तेल की कीमतें बहुत बढ़ गई थी। इससे महंगाई भी बढ़ी और उत्पादन भी घट गया।
मुद्रास्फीति लक्ष्य(Inflation Targeting)
मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण एक ऐसी नीति है जिसमें केंद्रीय बैंक (जैसे भारत में आरबीआई)महंगाई को एक तय सीमा के अंदर बनाए रखने का लक्ष्य तय करता है और उसी के अनुसार मौद्रिक नीतियां बनाते हैं।
उदाहरण के तौर पर, भारत में मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4% रखा गया है, जिसमें दो प्रतिशत से 6% तक की सीमा स्वीकृत है। अगर महंगाई बढ़ती है तो आरबीआई ब्याज दरें बढ़ाता है, और अगर महंगाई बहुत कम होती है तो ब्याज दर एक घटाई जाती है। इसका उद्देश्य देश में मूल्य स्थिरता बनाए रखना और आर्थिक विकास को संतुलित करना होता है।
तिरछी मुद्रास्फीति(Skewflation):-
तिरछी मुद्रास्फीति वह स्थिति होती है जब अर्थव्यवस्था में केवल कुछ खास वस्तुएं या सेवाओं की कीमतें तेजी से बढ़ती है, जबकि बाकी चीजों की कीमतें स्थिर रहती हैं या बहुत कम बढ़ती है। इससे महंगाई आसमान रूप से फैलती है और आम लोग जरूरी चीजों(जैसे खाद्य पदार्थ) के महंगे होने से प्रभावित होते हैं, भले ही कुल महंगाई दर ज्यादा ना दिखे। तिरछी मुद्रास्फीति आमतौर पर आपूर्ति की कमी, मौसम की खराबी या कुछ खास क्षेत्रों में मांग के बढ़ने के कारण होता है।
जीडीपी डिफ्लेटर(GDP Deflator):-
जीडीपी डिफ्लेटर एक ऐसा तरीका है जिससे हम यह समझते हैं कि देश में बनी चीजों और सेवाओं की कीमतें कितनी बढ़ी या घटी हैं। यह आज की कीमतों और पुरानी कीमतों यानी बेस साल की कीमतों की तुलना करके निकाला जाता है। अगर जीडीपी डिफ्लेटर 100 से ज्यादा है तो मतलब है कि महंगाई हुई है। यह हमें बताता है कि पूरे देश की आर्थिक गतिविधियों में महंगाई का कितना असर पड़ा है।
आधार प्रभाव(Base Effect):-
आधार प्रभाव का मतलब है कि किसी चीज की कीमत या बदलाव को हम जब पिछले साल से तुलना करते हैं, तो पिछले साल का नंबर ही तय करता है कि इस साल की बढ़त बड़ी लगेगी या छोटी। अगर पिछले साल कीमत बहुत कम थी और इस साल थोड़ी बढ़ी है तो बढत से ज्यादा लगेगी और अगर पिछले साल कीमत ज्यादा थी, तो इस साल की बढ़त कम लगेगी। यानी तुलना का आधार (बेस) बदलने से नतीजे भी बदल सकते हैं।
मुद्रास्फीति का प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव
कंपनियों को अधिक मुनाफा हो सकता है
आर्थिक विकास को थोड़ी मदद मिलती है (अगर मुद्रा स्थिति नियंत्रित हो)
नकारात्मक प्रभाव
आम आदमी की क्रय शक्ति घट जाती है
बचत की वैल्यू कम हो जाती है
मुद्रास्फीति को कैसे मापा जाता है
भारत में मुद्रास्फीति को मुख्ता दो सूचकांक को से मापा जाता है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक(CPI-Consumer Price Index):-
यह बताता है कि आम आदमी की रोजमर्रा की चीजे (दूध, सब्जी, कपड़े, आदि)की कीमतें खेलते कैसे बदल रही है।
थोक मूल्य सूचकांक(WPI-Wholesale Price Index)
यह थोक बाजार में वस्तुओं की कीमतों को ट्रैक करता है।
निष्कर्ष
मुद्रास्फीति(Inflation) एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है, जो किसी देश की वित्तीय स्थिति को दर्शाता है। जब कीमतों में अत्यधिक वृद्धि होती है, तो यह आम जनता की क्रय शक्ति को प्रभावित करती है और आर्थिक असंतुलन पैदा कर सकती है। इसलिए सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न नीतियां अपनाई जाती है। यदि समय रहते-मुद्रा स्थिति पर नियंत्रण न किया जाए, तो यह देश की विकास दर और लोगों की जीवन शैली पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। अतः मुद्रास्फीति की समझ और इससे जुड़े कारणों का ज्ञान हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है।
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लेखक परिचय
मैं, अनिल कुमार (अनिल चौधरी) जिसे A .K. Batanwal के नाम से भी जाना जाता है। A-ONE IAS IPS ACADEMY, सरस्वती नगर (मुस्तफाबाद), जिला यमुनानगर, हरियाणा, पिन कोड 133103 का संस्थापक और प्रबंध निदेशक हूं, साथ ही, मैं इस वेबसाइट
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