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बुधवार, 7 मई 2025

भारतीय रिजर्व बैंक(reserve bank of india)

 भारतीय रिजर्व बैंक(reserve bank of india)

भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केंद्रीय बैंक है, जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को हुई थी। यह देश के मौद्रिक नीति का संचालन करता है, बैंकों को नियंत्रित करता है और भारतीय अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। भारतीय रिजर्व बैंक न केवल मुद्रा जारी करता है, बल्कि यह देश की विदेशी मुद्रा भंडार का भी प्रबंधन करता है। मुंबई स्थित यह संस्थान वित्तीय समावेशन, डिजिटल भुगतान और बैंकिंग सेक्टर में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए भी काम करता है।

भारतीय रिजर्व बैंक का इतिहास


बहुत समय पहले की बात है, जब भारत आजाद भी नहीं हुआ था। साल था 1935, और अंग्रेजों ने एक खास बैंक की स्थापना की - नाम रखा भारतीय रिजर्व बैंक(Reserve Bank of India)। इसका काम सिर्फ नोट छाप नहीं था, बल्कि पूरे देश की आर्थिक सेहत का ध्यान रखना था। 

शुरुआत में इसका दफ्तर कोलकाता में था, लेकिन बाद में इसे मुंबई में ले जाया गया, जो आज भी इसका मुख्यालय है। जब भारत आजाद हुआ, तो 1949 में इस बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, यानि अब यह भारत सरकार के अधीन आ गया।

RBI के कार्य 


RBI पूरे देश की अर्थव्यवस्था को कंट्रोल करता है, 

RBI  मुद्रा छापता है 


आपके जेब में जो 10,100और 500 के नोट है उन पर गौर से देखिए हर एक पर लिखा होता है मैं धारक को.... अदा करने का वचन देता हूं - और उस पर आरबीआई गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं।


 बैंकों का बॉस

 SBI हो या कि कोई निजी बैंक, सबको RBI के नियम मानने पड़ते  हैं। वह बताता है कि बैंक कितना कर्ज दे सकते हैं, कितना कैश रखे, हैं ब्याज दरें कितनी हों। 

महंगाई से लड़ाई


 जब महंगाई बढ़ती है, तो RBI अपने सुपर पावर इस्तेमाल करता है: जैसे रेपो रेट बढ़ा देना, ताकि बैंक कर्ज देने में सतर्क हो जाए और खर्च घटे।

 डिजिटल इंडिया का साथी


 NEFT, RTGS,UPI और अब डिजिटल रुपया (CBDC) सबके पीछे RBI का ही दिमाग है।

 

 मौद्रिक की नीति समिति -RBI के मंत्रीपरिषद जैसी टीम


 RBI की एक खास टीम होती है- मौद्रिक नीति समिति(Monetary Policy Committee)। इसमें 6 सदस्य होते हैं, जो तय करते हैं कि रेपो रेट क्या होगी, महंगाई पर कैसे कंट्रोल किया जाए।

 आज का RBI 


आज RBI सिर्फ एक बैंक नहीं, एक संस्थान है जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए दिन-रात काम करता है।

उच्च आवृत्ति संकेतक


अर्थशास्त्र में High Frequency Indicator  का मतलब है ऐसे आंकड़े या सूचकांक जो बार-बार (दैनिक, साप्ताहिक या मासिक) अपडेट होते हैं और जो हमें अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी देते हैं। इन्हें देखकर हम यह समझ सकते हैं कि अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है।


इन सूचकांकों का उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि कोई आर्थिक गतिविधि( जैसे व्यापार ,उत्पादन, खपत) आदि तेजी से बढ़ रही है या घट रही है।


उच्च आवृत्ति सूचकांक के उदाहरण:


1. शेयर बाजार की जानकारी - जैसे स्टॉक की कीमतें और ट्रेडिंग 


2. उपभोक्ता का विश्वास- लोग भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं क्या खरीदारी करेंगे आदि। 


3. बेरोजगारी भत्ते के दावे - लोग कितने बेरोजगार हैं इसका आंकड़ा 


4.खुदरा बिक्री - दुकानों में कितनी बिक्री हो रही है। 


5. बिजली का इस्तेमाल- ज्यादा बिजली का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था में बढ़ती गतिविधि का संकेत हो सकता है।


यह सूचकांक हमें अर्थव्यवस्था के बारे में त्वरित और सटीक जानकारी प्रदान करते हैं।  इन सूचकांकों से हमें जल्दी समझ में आता है कि अर्थव्यवस्था में क्या हो रहा है, जिससे सही समय पर फैसले लिए जा सकते हैं।




बैंक क्रेडिट (Bank Credit):-


बैंक क्रेडिट वह धन है जिसे बैंक अपने ग्राहकों को उधार देता है। यह व्यापारियों, उद्योगपतियों, और आम लोगों को दिया जा सकता है ताकि वे अपने कार्यों के लिए पैसे का उपयोग कर सके, जैसे व्यापार चलाने, घर खरीदने या किसी अन्य व्यक्तिगत जरूरत के लिए। बैंक क्रेडिट से अर्थव्यवस्था को बहुत मदद मिलती है क्योंकि यह आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है।


बैंक क्रेडिट का महत्व


आर्थिक विकास


 जब बैंक लोगों और व्यापारियों को उधार देते हैं, तो वे नये व्यापार शुरू कर सकते हैं, अपनी गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं, और रोजगार सृजन कर सकते हैं।


उपभोक्ता खर्च


जब लोग बैंक से लोन लेते हैं, तो वह अपने खर्चों को बढ़ाते हैं, जैसे घर या कर खरीदने के लिए। इससे अर्थव्यवस्था की मांग बढ़ती है।




बैंक क्रेडिट के प्रकार


लघु अवधि क्रेडिट(Short term Credit):-


 यह छोटा ॠण होता है जो कुछ महीनो के लिए दिया जाता है।


दीर्घकालिक क्रेडिट(Long term Credit):-


 यह लंबी अवधि के लिए होता है जैसे घर का लोन या व्यवसाय विस्तार के लिए।


बैंक क्रेडिट पर प्रभाव डालने वाले तत्व


ब्याज दर (Interest Rates):-


जब केंद्रीय बैंक ब्याज दरें घटता या बढ़ता है तो इसका असर बैंक क्रेडिट पर पड़ता है।


मुद्रास्फीति (Inflation):-


जब कीमती बढ़ती है तो बैंक क्रेडिट का विस्तार कम हो सकता है।


आरक्षित अनुपात(Reserve Ratio):-


 यह वह राशि होती है जो बैंक को अपनी जमा पूंजी में से रिजर्व के रूप में रखनी पड़ती है इसका भी बैंक क्रेडिट पर असर पड़ता है।


बैंक क्रेडिट और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI):-


 भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बैंक क्रेडिट को नियंत्रित करता है यह तय करता है कि बैंक कितनी आसानी से लोन दे सकते हैं


NPA (Non- Performing Assets):-


 एनपीए वे लोन होते हैं जो ग्राहक समय पर नहीं चुका पाते अगर यह ज्यादा हो जाए तो बैंक क्रेडिट देने में मुश्किल आती है।







निष्कर्ष


 भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है, जो मौद्रिक नीतियों, बैंकिंग नियंत्रण, और वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करता है। आरबीआई की नीतियां देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाती है और यह सुनिश्चित करती है कि देश का बैंकिंग सिस्टम सुरक्षित, पारदर्शी और जनहित कार्य बना रहे।


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लेखक परिचय

मैं, अनिल कुमार (अनिल चौधरी) जिसे A .K. Batanwal  के नाम से भी जाना जाता है। A-ONE IAS IPS ACADEMY, सरस्वती नगर (मुस्तफाबाद), जिला यमुनानगर, हरियाणा, पिन कोड 133103 का संस्थापक और प्रबंध निदेशक हूं, साथ ही, मैं इस वेबसाइट

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