भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जिसका निर्माण एक लंबी ऐतिहासिक प्रकिया और स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा से हुआ। भारतीय संविधान का विकास अनेक ब्रिटिश कानूनों, ऐतिहासिक घटनाओं और स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों का परिणाम है। इस संविधान ने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया। संविधान निर्माण की प्रक्रिया 1946 में संविधान सभा के गठन से शुरू होकर 26 जनवरी 1950 को पूर्ण हुई, जब इसे आधिकारिक रूप से लागू किया गया। इस लेख में हम भारतीय संविधान के विकास, उसके प्रमुख चरणों और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को विस्तार से समझेंगे।
भारतीय संविधान का विकास
संविधान शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द कानसटीटयूरे से हुई है जिसका अर्थ प्रबंध करना , व्यवस्था करना है या आयोजन करना होता है
1895 ईस्वी में बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज विधेयक का प्रारूप प्रस्तुत किया। उसके बाद 1922 ईस्वी में महात्मा गांधी तथा 1934 ईस्वी में जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय संविधान का निर्माण के लिए संविधान सभा के गठन की मांग की। भारत में संविधान सभा के गठन का विचार सर्वप्रथम एमएन राय ने 1934 में रखी थी भारतीय संविधान के ऐतिहासिक विकास का काल 1600 से प्रारंभ होता है। इसी वर्ष इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई थी ।ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना एक चार्टर एक्ट द्वारा की गई थी ।कंपनी के प्रबंध की समस्त शक्ति गवर्नर तथा 24 सदस्य परिषद् में निहित थी।
1726 का चार्टर एक्ट (लार्ड नॉर्थ की सरकार)
1726 का चार्टर एक्ट ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए बनाया था ताकि भारत में कानून और प्रशासन ठीक से चल सके। इसके तहत तीन बड़े शहरों मुंबई, मद्रास और कोलकाता में नगर निगम और मेयर कोर्ट (न्यायालय) बनाए गए ।इससे लोगों को अपने झगड़े सुलझाने के लिए एक तय जगह और तरीका मिला। मुंबई को भी अब मद्रास और कोलकाता जितना ही महत्वपूर्ण माना गया। यह एक्ट भारत में एक सही और आधुनिक न्याय प्रणाली की शुरुआत था।
और कोलकाता, मुंबई और मद्रास प्रेसिडेंसी के राज्यपाल एवं उनकी परिषद को विधायी अधिकार प्रदान किया गया ।अब तक यह शक्ति कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स मे थी।
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
1773 में ब्रिटिश सरकार ने रेगुलेटिंग एक्ट बनाया ताकि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कामकाज पर नियंत्रण रखा जा सके। इस एक्ट के जरिए पहली बार ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के शासन में दखल देना शुरू किया। इसके तहत गवर्नर ऑफ बंगाल को अब गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल बना दिया गया, और पहला गवर्नर जनरल बना वारेन हेस्टिंग्स ।साथ ही कोलकाता में एक सुप्रीम कोर्ट भी बनाई गई, जिससे कानून का काम बेहतर तरीके से हो सके। इस एक्ट से कंपनी की आजादी कम हुई और ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण बढा। यह भारत में ब्रिटिश शासन की एक नई शुरुआत थी।
पिट्स इंडिया एक्ट 1784
1784 में ब्रिटिश सरकार ने पिट्स इंडिया एक्ट बनाया, ताकि ईस्ट इंडिया कंपनी पर और ज्यादा नियंत्रण रखा जा सके। यह एक्ट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विलियम पिट के नाम पर रखा गया। इसके तहत भारत के मामलों को देखने के लिए एक नया विभाग बना- बोर्ड ऑफ कंट्रोल, जो सरकार के अधिकारी चलाते थे। अब भारत में शासन का काम दो हिस्सों में बट गया- कंपनी काम करती थी, लेकिन असली नियंत्रण ब्रिटिश सरकार के पास था। इससे सरकार को भारत में हो रही चीजों पर सीधा नजर रखने में मदद मिली। यह एक्ट ब्रिटिश शासन को और मजबूत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम था।
1813 का चार्टर एक्ट
1813 में अंग्रेजों ने एक नया कानून बनाया जिसे 1813 का चार्टर एक्ट कहा जाता है। इस एक्ट से ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में 20 साल और काम करने की इजाजत मिली, लेकिन अब अकेले कंपनी को व्यापार करने का हक नहीं था। दूसरी अंग्रेज कंपनियां भी भारत में व्यापार कर सकती थी( बस चाय और चीन के साथ व्यापार कंपनी के पास ही रहा) इस कानून से पहली बार कहा गया कि भारत में शिक्षा पर पैसा खर्च किया जाए, और ईसाई धर्म प्रचारकों को भारत में काम करने दिया गया। यह एक्ट भारत में बदलाव की शुरुआत थी।
1833 का चार्टर एक्ट
1833 का चार्टर एक्ट ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक बड़ा बदलाव था। इस एक्ट से कंपनी का व्यापार पर एकाधिकार पूरी तरह से खत्म हो गया, यानि अब और भी कंपनियां भारत में व्यापार कर सकती थी। इसके अलावा गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया का पद बनाया गया, जिससे वह पूरे भारत के प्रशासन को देख सके। इस एक्ट के साथ भारत में कानूनी सुधार की शुरुआत भी हुई, और भारतीय कानूनों को एक जगह एकत्रित किया गया। यह एक्ट ब्रिटिश शासन को मजबूत करने और भारत में प्रशासन में सुधार करने के लिए था।
चार्टर एक्ट 1833 ने सिविल सेवकों के चयन के लिए प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास
1853 का चार्टर एक्ट
1853 का चार्टर एक्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा पास किया गया एक कानून था, जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत पर शासन कुछ समय के लिए और जारी रहा। इस एक्ट में गवर्नर जनरल की परिषद को दो हिस्सों में बांटा गया- एक जो शासन चलाए और दूसरा जो कानून बनाए। इसमें 6 नए सदस्य कानून बनाने के लिए जोड़े गए। इस कानून में पहली बार सरकारी नौकरी (सिविल सेवा) में भर्ती के लिए परीक्षा का सुझाव दिया गया, जिससे योग्य लोगों को मौका मिल सके। यह एक्ट भारत के प्रशासन में बदलाव की शुरुआत था और कंपनी के शासन के अंत की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाता है।
1858 का अधिनियम
1858 का अधिनियम एक ऐसा कानून था जिससे भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म हो गया और भारत का प्रशासन सीधे ब्रिटिश सरकार के हाथ में चला गया। अब ब्रिटेन की रानी भारत की शासक बन गई और भारत के लिए एक भारत सचिव नियुक्त किया गया, जो ब्रिटेन से भारत का सारा कामकाज देखता था। भारत में गवर्नर जनरल को अब वायसराय कहा गया, जो रानी की ओर से भारत पर राज करता था। रानी विक्टोरिया ने एक घोषणा में भारतीयों को धर्म, कानून और नौकरी में बराबरी का वादा किया। यह अधिनियम भारत में ब्रिटिश सरकार के सीधे शासन की शुरुआत थी।
1861 का भारत परिषद अधिनियम
1861 का भारत परिषद अधिनियम एक ऐसा कानून था जिससे अंग्रेजों ने वायसराय को कानून बनाने के लिए एक सलाहकार समूह बनाने की इजाजत दी। इस समूह में कुछ भारतीयों को भी शामिल किया गया, लेकिन उन्हें सिर्फ सलाह देने का हक था, फैसला अंग्रेज ही लेते थे। मुंबई और मद्रास जैसे राज्यों को अपने छोटे छोटे कानून बनाने की आज़ादी दी गई। यह कानून सिर्फ दिखाने के लिए था कि भारतीयों को सरकार में जोड़ा जा रहा है, लेकिन असली राज अंग्रेज ही करते रहे।
इस अधिनियम द्वारा प्रांतीय विधायिका का तथा देश के शासन के विकेंद्रीकरण का कार्यक्रम हुआ
लार्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों बनारस के राजा ,पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया
1865 का अधिनियम
1865 का अधिनियम एक कानून था जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में लागू हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय कानून को सुधारना और एक साफ सुथरी कानूनी व्यवस्था बनाना था। इस अधिनियम के तहत भारत में अपराधों को नियंत्रित करने के लिए एक नया कानून बनाया गया था, जिसे भारतीय दंड संहिता कहा गया।
इसका मकसद यह था कि अपराधों को ठीक से परिभाषित किया जाए और सजा का एक निश्चित तरीका हो, ताकि न्याय प्रणाली ज्यादा व्यवस्थित और प्रभावित हो सके।
संक्षेप में यह अधिनियम भारतीय कानूनी सिस्टम को एक नया रूप देने के लिए था, ताकि ब्रिटिश सरकार अपने नियंत्रण को मजबूती से बनाए रख सके।
1869 का अधिनियम
1869 का अधिनियम भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया एक कानून था, जिसे डायवोर्स एक्ट 1869 कहा जाता है। यह कानून खास तौर पर ईसाई धर्म के लोगों के लिए बनाया गया था, ताकि वे कानूनी रूप से तलाक ले सके। इससे पहले तलाक के लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं था। इस अधिनियम ने यह तय किया कि पति और पत्नी किन वजह से अलग हो सकते हैं, तलाक कैसे दिया जाएगा, और तलाक के बाद उनके अधिकार क्या होंगे। यह भारत में तलाक से जुड़ा पहला कानून था जो ईसाई समुदाय के लिए लागू किया गया।
1876 का शाही उपाधि अधिनियम
1876 का शाही उपाधि अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा बनाया गया एक कानून था, जिसके तहत ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को भारत के साम्राज्ञी की उपाधि दी गई। इस अधिनियम का उद्देश्य यह दिखाना था कि भारत अब पूरी तरह से ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा है और ब्रिटिश सम्राट भारत के शासक हैं। इसके बाद 1877 में दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया, जहां महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया। यह अधिनियम ब्रिटिश सत्ता को मजबूत करने और भारत में उनकी बादशाहत का प्रतीक था।
1892 का अधिनियम
1892 का अधिनियम एक ऐसा कानून था जिसे ब्रिटिश सरकार ने बनाया था, ताकि भारतीयों को सरकार के कामकाज में थोड़ी भागीदारी मिल सके। इसके तहत कुछ भारतीयों को विधान परिषद (जैसे आज की संसद) का सदस्य बनने दिया गया। उन्हें सरकार से सवाल पूछने और खर्चों पर चर्चा करने की अनुमति मिली, लेकिन वे कोई फैसला नहीं ले सकते थे। यह कानून भारतीयों को थोड़ा हक देने की शुरुआत थी, लेकिन बहुत सीमित था।
1909 का मार्ले मिंटो सुधार अधिनियम
1909 का अधिनियम जिसे मार्ले मिंटो सुधार कहा जाता है, ब्रिटिश सरकार ने भारत में लागू किया था। इसके तहत भारतीयों को चुनावों के जरिए विधान परिषद (संसद) में कुछ प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया गया। इस कानून के तहत मुसलमानों के लिए अलग मतदान का अधिकार (अलग चुनाव क्षेत्र) तय किया गया, यानी वे सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवारों को ही वोट दे सकते थे। यह अधिनियम भारतीयों को थोड़ा और अधिकार देता था, लेकिन इससे हिंदू और मुसलमानों के बीच अलगाव भी बढ़ने लगा
1919 का भारत सरकार अधिनियम
1919 का भारत सरकार अधिनियम, जिसे मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है, ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक सुधारो के रूप में लागू किया था। इसके तहत भारत में पहली बार दोहरी सरकार की व्यवस्था शुरू की गई, जिसमें कुछ विषयों पर भारतीय मंत्री काम कर सकते थे (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य), जबकि बाकी अहम विषय अंग्रेज अधिकारियों के पास ही रहे (जैसे पुलिस और रक्षा)। इसके अलावा कुछ लोगों को वोट देने का अधिकार भी मिला और विधानसभा की शक्तियां थोड़ी बढ़ाई गई। हालांकि इस अधिनियम से भारतीयों को सीमित अधिकार ही मिले और असली सत्ता ब्रिटिश सरकार के हाथ में ही बन रही।
1935 का भारत सरकार अधिनियम
1935 का भारत सरकार अधिनियम ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा कानून था, जिसका मकसद भारत को कुछ हद तक खुद चलाने की आजादी देना था। इसमें यह तय किया गया कि केंद्र और प्रांतों (राज्यों) के बीच काम कैसे बंटेगा। प्रांतों को ज्यादा अधिकार दिए गए और वहां भारतीय नेताओं की सरकार बनाई गई। वोट देने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ाई गई। हालांकि इससे भारतीयों को कुछ अधिकार मिले, लेकिन सबसे बड़ी ताकत अभी भी अंग्रेजों के हाथों में थी। यह कानून आगे चलकर भारत का संविधान बनाने की नींव बना।
1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम
1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पास किया गया एक कानून था, जिसके तहत भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली। इस अधिनियम के अनुसार भारत को दो स्वतंत्र देशों- भारत और पाकिस्तान में बांट दिया गया। ब्रिटिश सरकार का भारत पर शासन पूरी तरह से खत्म हो गया और दोनों देशों को अपने-अपने संविधान बनाने और खुद सरकार चलाने का अधिकार दिया गया। यह अधिनियम भारत की आजादी का कानूनी आधार था और इसी के जरिए भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।
संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा की मांग
संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा की मांग सबसे पहले 1934 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने की थी, जिसे बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य नेताओं ने भी जोर से उठाया। भारतीयों का मानना था कि भारत का संविधान केवल भारतीयों द्वारा ही बनाया जाना चाहिए, न कि ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपा जाए। यह मांग लंबे समय तक चलती रही और अंत में 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा का गठन हुआ। इस सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1940 को हुई और इसी ने बाद में भारत का संविधान तैयार किया, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।